Monday, July 29, 2019

पानी चोरी करने वाले किसानों को होगी 2 साल की सजा

गुजरात सरकार ने विधानसभा में नया कानून जिसे सिंचाई और जल निकासी संशोधन बिल 2019 का नाम दिया गया है इसमें सरकार ने प्रावधान किया है, कि पानी चोरी अब अपराध होगा जो किसान पानी की चोरी करेगा उसे, इस कृत्य पर 2 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस कानून के बन जाने के बाद यदि कोई किसान पानी चोरी करते हुए पकड़ा गया, तो उसे 2 साल की जेल और 2 लाख तक का जुर्माना या दोनों सजा एक साथ हो सकती हैं। देश में इस तरह का यह पहला कानून है। जिसमें पानी की चोरी करने पर किसानों को 2 साल के लिए जेल भेजा जाएगा। प्राकृतिक आपदा के कारण यदि पानी नहीं बरसा, और किसान ने फसल को बचाने के लिए पानी की चोरी कर ली। ऐसी स्थिति में उसे 2 साल के लिए जेल जाना पड़ेगा। गुजरात सरकार के इस प्रावधान से किसानों में चिंता व्याप्त हो गई है। फसल में जब पानी बहुत आवश्यक होता है। तभी किसान जब सरकार से पानी नहीं मिलता है, तब चोरी करने को विवश होता है। पानी नहीं मिलने पर पूरी फसल बर्बाद होने से बचाने के लिए किसान चोरी करके भी फसल को बचाने का प्रयास करता है किंतु सरकार अब इस मामले में किसानों को जेल भेजने में अमादा हो गई है। अभी तक बिना अनुमति के सिंचाई के लिए पानी लेने पर जुर्माने का प्रावधान था। गुजरात सरकार ने अब सजा का प्रावधान करके किसानों को चिंता में डाल दिया है। सरकार के इस नए संशोधन प्रस्ताव के बाद किसान खेती करेंगे, या डर के मारे खेती करना ही छोड़ देंगे। 


गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने पानी चोरी करने पर किसानों को जेल भेजने का प्रावधान किया है। गुजरात सरकार की देखा देखी अन्य राज्य में इसी तरह का प्रयास कर सकते हैं। जिसका दीर्घ कालीन असर खेती पर पड़ना तय माना जा रहा है। किसान बहुत जोखिम लेकर खेती करता है। उसके ऊपर खाद बीज और मजदूरी का कर्ज होता है। यदि समय पर बारिश नहीं होती है तो पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। ऐसे समय पर यदि उसे फसल बचाने के लिए पानी लेना आवश्यक हो जाता है। बिना अनुमति के यदि उसमें पानी ले लिया तो उसका जेल जाना तय होगा। ऐसी स्थिति में अब किसान खेती करेंगे या नहीं इसको लेकर गुजरात में किसानों के बीच चर्चाएं होने लगी हैं। गुजरात में लगभग दो दशक से भाजपा का शासन है। इतने लंबे शासनकाल में यदि किसानों को फसल के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है, तो यह गुजरात सरकार की अक्षमता ही मानी जाएगी। जैसे कोई मां अपने बच्चे को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करती है। लगभग वही हालत किसान की होती हैं। किसान अपनी फसल को बच्चे की तरह पालता पोसता हैं। वह अपनी फसल को  बर्बाद होते  देख नहीं सकता है। खेती के धंधे से हजारों किसान प्रत्येक राज्य में जमीन बेचकर बाहर हो रहे थे। सरकार के इस रुख के बाद किसान फसल बोना ही छोड़ दें। जमीन बेचकर खेती के स्थान पर नौकरी अथवा अन्य धंधे में जाने कि संभावना बढ़ गई है। जिसके कारण अगले कुछ वर्षों में खाद्यान्न, सब्जी, इत्यादि के संकट का सामना करना पड़ सकता है। पिछले डेढ़ दशक में किसानों के उपर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। प्रत्येक राज्य में हजारों की संख्या में किसान आत्म हत्या कर रहे है। खेती का लागत मूल्य बढ़ता जा रहा है। फसल की कीमत उस तुलना में किसानों को नहीं मिल पाती है। फसल बीमा के नाम पर सरकार की राह पर बीमा कंपनियों द्वारा शोषण किया जा रहा है। किसान की  जिस फसल पर कर्ज दिया गया है। किसान से उसका बीमा प्रीमियम बैंक द्वारा काट लिया जाता है। जब फसल बर्बाद होती है,तो बीमा कंपनी लोन राशि, जिसका प्रीमियम बैंक ने काटा था, वह मुआवजा भी नहीं देती है। किसान को लूटने के लिए पटवारी, तहसीलदार, बैंक, बीमा कंपनियां और,सहकारी समितियां कोई मौका नहीं छोड़ती है। इसके बाद भी किसान खेती कर अपने परंपरागत व्यवसाय से जुड़ा हुआ था। किसानों को जेल भोगने के इस कानून के बाद किसान खेती की जमीन बेचकर नौकरी करने मजबूर होंगे। खेती के धंधे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाने के लिए सरकार इस तरह के कानून बना रही है। गुजरात सरकार के कानून से यही संदेश मिल रहा है। 


लेखक-सनत कुमार जैन


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