तीन तलाक को तलाक या तीन तलाक गैर कानूनी
- राज्यसभा से तीन तलाक विधेयक पास, 99 वोट पक्ष में, 84 वोट विपक्ष में
- बीएसपी, पीडीपी, टीआरएस, जेडीयू, एआईएडीएमके ने नहीं की वोटिंग
- राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 21 फरवरी को जारी अध्यादेश की जगह लेगा
- अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दो बार लोकसभा से पास हुआ लेकिन, राज्यसभा में अटका
- मोदी पार्ट-2 में बिल 25 जुलाई को लोकसभा से पास और 5 दिन बाद ही राज्यसभा में वोटिंग
- बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने का प्रस्ताव 84 के मुकाबले 100 वोटों से गिरा
विधेयक में ये प्रावधान
- अब तीन तलाक गैर-कानूनी होगा
- दोषी को 3 साल की सजा होगी
- पीडि़त महिलाएं अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा-भत्ता मांग सकेंगी
नई दिल्ली । तीन तलाक विधेयक मंगलवार को राज्यसभा में पास हो गया। उच्च सदन में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक के पक्ष में 99, जबकि 84 ने इसके विरोध में मतदान किया। अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक 21 फरवरी को जारी मौजूदा अध्यादेश की जगह ले लेगा। राजनीतिक हलकों में इसे मोदी सरकार की सबसे बड़ी रणनीतिक जीत माना जा रहा है। बता दें कि 16वीं लोकसभा में भी इस बिल को पास किया गया था। लेकिन, राज्यसभा में यह बिल अटक गया था। लगातार दूसरी बार मोदी सरकार में इसे पेश किया गया, जहां मंगलवार को इसे पास करने में कामयाबी मिली।
राज्यसभा में मंगलवार को तीन तलाक विधेयक पेश किया गया। यहां प्रमुख विपक्ष दल कांग्रेस ने इसका तीखा विरोध किया। राज्यसभा में एनडीए बहुमत में नहीं है। ऐसी स्थिति में विपक्ष के कुछ दलों बसपा, तेदेपा, पीडीपी, टीआरएस, जदयू, एआईएडीएमके और टीडीपी ने वोटिंग का बहिष्कार कर दिया। इससे मोदी सरकार की राह आसान हो गई। वहीं, बीजद ने विधेयक के समर्थन में वोटिंग करके सोने पर सुहागा कर दिया। इसके लिए भाजपा ने व्हिप भी जारी किया था। राज्यसभा में यह बिल पास होना सरकार के लिए बड़ी कामयाबी माना जा रहा है, क्योंकि उच्च सदन में अल्पमत में होने के चलते उसके लिए इस बिल को पास कराना मुश्किल था।
विपक्ष की कमजोरी
बिल की मंजूरी से विपक्ष की कमजोर रणनीति भी उजागर हुई। विधेयक का विरोध करने वाली कांग्रेस कई अहम दलों को अपने साथ बनाए रखने में असफल रही। इससे पहले भी बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव भी 100 के मुकाबले 84 वोटों से गिर गया।
सजा के प्रावधान में कुछ गलत नहीं : कानून मंत्री
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि दहेज विरोधी कानून और बहुविवाह रोकने से जुड़े कानून में भी दोषी हिंदू पुरुष को जेल भेजने का प्रावधान है, लिहाजा तीन तलाक के दोषी पुरुष को सजा के प्रावधान में कुछ गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक लैंगिक समानता और महिलाओं के सम्मान का मामला है। तीन तलाक कहकर बेटियों को छोड़ दिया जाता है, इसे सही नहीं कहा जा सकता।
मोदी सरकार की जीत का गणित
मोदी सरकार की इस विधेयक पर जीत में टीआरएस ने बड़ी भूमिका निभाई। 245 सदस्यों की राज्यसभा में 4 सीटें खाली हैं। ऐसे में 241 सदस्यों के इस सदन में बहुमत का आंकड़ा 121 है। एनडीए गठबंधन को राज्यसभा में 12 मनोनीत, 7 बीजद और निर्दलीय सांसदों समेत कुल 114 सदस्यों का समर्थन है। जदयू के 6 सांसदों के वॉकआउट करने की स्थिति में बहुमत का आंकड़ा 118 पर आ गया। ऐसे में भाजपा को बहुमत के लिए महज चार वोटों की जरूरत थी। ऐसे में टीआरएस के 6 सदस्यों ने बहिर्गमन करके सरकार का काम आसान कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कानून
अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिसंबर, 2017 में इसे कानून बनाने विधेयक पेश किया।
- दिसंबर, 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पारित कराया। लेकिन, राज्यसभा में अल्पमत होने से अटक गया।
- विपक्ष ने मांग की थी कि तीन तलाक के आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान भी हो।
- 2018 में विधेयक में संशोधन किए गए। लेकिन, यह फिर भी राज्यसभा में पास नहीं हो पाया।
- सितंबर, 2018 में अध्यादेश लेकर आई। इसमें जमानत का प्रावधान जोड़ा गया।
- तीन तलाक देने पर तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया।
-शाहबानो के हौसलों को सलाम
सबसे पहले तीन तलाक के खिलाफ 1986 में शाहबानो ने सवाल उठाए थे। इस दौरान सरकार ने उनके इस कदम का विरोध किया था। शाहबानो ने पूरी शिद्दत से इस केस को लड़ा और आज यह एक कानून के रूप में नजीर बन गया।