नई दिल्ली । अमित शाह ने 1 जून को गृहमंत्री का कार्यभार संभाला तो मिशन कश्मीर उनके एजेंडा में सबसे ऊपर था। उन्होंने कार्यभार संभालते ही सबसे पहले गृहमंत्रालय के अफसरों से कश्मीर मामले पर प्रेजेंटेशन मांगा। ठीक तीन दिन बाद चार जून को उन्होंने गृहसचिव राजीव गौबा, कश्मीर मामला देख रहे अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कश्मीर पर फिर से बैठक की। छह जून को दोबारा उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और गृहसचिव के साथ कश्मीर की समीक्षा बेठक में उन्होंने अपना एजेंडा बताया। खुद शाह ने कश्मीर से जुड़े एक-एक पहलू को बहुत विस्तार व बारीकी से अध्ययन किया। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान ही गृहमंत्री अमित शाह ने पीडीपी सांसद को जवाब देते हुए लोकसभा में स्पष्ट कर दिया था कि धारा 370 अस्थायी है। इसके बाद उन्होंने कई बार अनौपचारिक तरीके से भी अपना एजेंडा स्पष्ट किया।
- कई स्तरों पर की गई तैयारी
26 जून को शाह श्रीनगर पहुंचे। इसके पहले डोभाल भी अपने गोपनीय मिशन पर 24 जुलाई को श्रीनगर पहुंचे थे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी कश्मीर से सटे सीमावर्ती इलाकों में हालात का जायजा लेने गए। पिछले 10 दिनों में मिशन मोड में हुआ काम पिछले दस दिनों में शाह का कश्मीर एजेंडा मिशन मोड में आ गया। जब 27 जुलाई को खबर आई कि जम्मू कश्मीर में दस हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती कर दी गई है तो इसके बाद घाटी सहित दिल्ली के सियासी गलियारे में तरह तरह की चर्चा शुरू हो गई। इसके पहले रेलवे सुरक्षा से जुड़े एक अफसर का पत्र लीक हुआ जिसमें कई ऐहतियाती उपायों के बारे में निर्देश दिए गए थे। एक अगस्त को 28 हजार और जवानों को तैनाती की घोषणा सामने आई। दस अगस्त को अमरनाथ यात्रा रोकने का आदेश जारी हुआ। तीन अगस्त को छह हजार से ज्यादा पर्यटकों को घाटी से बाहर भेजा गया। चार अगस्त को कश्मीर के बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। पांच अगस्त को सुबह कैबिनेट की बैठक हुई और शाम होते होते धारा 370 की विदाई का एक चरण पूरा हो गया।