नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार रात मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही मुस्लिम महिलाओं को एक साथ तीन तलाक देने को अपराध करार देने वाला बिल कानून बन गया। मुस्लिम महिला (शादी पर अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक, 2019 के कानून बन जाने से अब मौखिक, लिखित या किसी भी अन्य माध्यम से तीन तलाक देना कानूनन अपराध होगा। तीन तलाक पर लोकसभा में तीन बार पास होने के बावजूद राज्यसभा में खारिज हो चुका विधेयक आखिरकार मंगलवार को उच्च सदन में पास हुआ था। बिल के पक्ष में 99 और विरोध में 84 वोट पड़े। लोकसभा चुनाव 2019 के बाद पहले संसद सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर परिचर्चा के दौरान बीते 25 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस से गलती सुधारने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि महिला सशक्तीकरण के लिए कांग्रेस को कई बड़े मौके मिले, लेकिन हर बार वो चूक गए। 1950 के दशक में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस के दौरान वे पहला मौका चूके। इसके 35 साल बाद शाहबानो केस के दौरान एक और मौका गंवाया। अब तीन तलाक बिल के रूप में इनके पास एक और मौका है। पिछले हफ्ते लोकसभा में बहुमत के साथ इस बिल के पास होने के बाद राज्यसभा में चौथी बार इसके पास होने को लेकर संशय था। कारण कि उच्च सदन में सरकार के पास बहुमत नहीं है। इसके बावजूद विपक्षी दलों के बिखराव और मित्र दलों की सहायता से यह बिल पास हो गया।
कब दर्ज होगा 3 तलाक का केस
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक यह अपराध संज्ञेय (इसमें पुलिस सीधे गिरफ्तार कर सकती है) तभी होगा, जब महिला खुद शिकायत करेगी। इसके साथ ही खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी केस दर्ज करने का अधिकार रहेगा। पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है।
समझौते कि लिए क्या है शर्त
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह बिल महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए है। कानून में समझौते के विकल्प को भी रखा गया है। पत्नी की पहल पर ही समझौता हो सकता है, लेकिन मजिस्ट्रेट के द्वारा उचित शर्तों के साथ।
बेल के लिए क्या है शर्त
कानून के तहत मजिस्ट्रेट इसमें जमानत दे सकता है, लेकिन पत्नी का पक्ष सुनने के बाद। केंद्रीय मंत्री ने कहा, यह पति-पत्नी के बीच का निजी मामला है। पत्नी ने गुहार लगाई है, इसलिए उसका पक्ष सुना जाना जरूरी होगा।
गुजारे के लिए क्या है प्रावधान
तीन तलाक पर कानून में छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दिए जाने का प्रावधान है। पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण का अधिकार मजिस्ट्रेट तय करेंगे, जिसे पति को देना होगा।